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22 नवम्बर-नेताजी के जन्मदिन पर विशेष आलेख!

भारतीय राजनीति के सूर्य थे "मुलायम"

भारतीय राजनीति में मुलायम सिंह यादव जी से बड़ी कोई राजनैतिक शख्सियत नहीं । ।नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के बाद यदि किसी को वर्तमान समय में “नेताजी” नाम से सम्बोधित किया जाता है, तो वे मुलायम सिंह यादव जी ही हैं। नेताजी नाम से संबोधन आजाद हिन्द सेना के संस्थापक सुभाष चन्द्र बोस को उनकी क्रांतिकारी छवि, लड़ाकू प्रवृत्ति और अद्भुत नेतृत्व क्षमता के कारण मिला, तो समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव जी को भी नेताजी की उपाधि कुछ ऐसे ही लड़ाकू,अक्खड़, सफल नेतृत्वकर्ता गुणों के कारण प्राप्त हुई है।
नेताजी मुलायम सिंह यादव जी का अभ्युदय तो 1967 में विधायक बनने के साथ ही हो गया था, लेकिन निखार 1977 के बाद आना शुरू हुआ।जो 1989 में पूरे शबाब पर आ गया।1977 में सहकारिता मंत्री के रूप में सहकारिता आंदोलन में अमिट छाप छोड़ने के कारण नेताजी की गणना उत्तर प्रदेश के जुझारू नेताओं के रूप में होने लगी थी। 1984 आते-आते नेताजी उत्तर प्रदेश की राजनीति के तत्कालीन सर्वश्रेष्ठ राजनेता चौधरी चरण सिंह जी के अति निकटस्थ और विश्वस्त लोगों की सूची में शामिल हो चुके थे। चौधरी साहब ने सरेआम मुलायम सिंह यादव जी को अपना उत्तराधिकारी और राजनैतिक वारिस घोषित कर दिया था।उन्होंने नेताजी को अपना दत्तक पुत्र मानकर अपने सारे राजनैतिक जमीन को उन्हें सौंप दिया था।किसानों के लिए संघर्ष करने,अन्याय के समक्ष न झुकने व हर जुल्म-ज्यादती के खिलाफ डटकर खड़े रहने की खूबियों ने चौधरी साहब को इतना प्रभावित किया कि वे मुलायम सिंह यादव जी को यूपी का नेतृत्व सौंपा। नेताजी ने भी चौधरी साहब के सपनों को कभी धूमिल नहीं होने दिया।उन्होंने संघर्ष को ही अपना ओढ़ना-बिछौना बनाकर सदैव संघर्ष किया। किसानों की पीड़ा को अपनी पीड़ा माना।1988 का दौर जब चौधरी साहब मरण शैया पर लेटे हुए थे, तो उनका यह दत्तक पुत्र चौधरी साहब के सपनों को मूर्त रूप देने के लिए संघर्षरत था।
“समाजवादी क्रांति रथ”के पहिये उत्तर प्रदेश में समाजवादी अलख के लिए चल पड़े थे, जिस पर क्रांति नायक मुलायम सिंह यादव जी सवार थे। एक बस को क्रांति रथ का नाम देकर मुलायम सिंह यादव जी पूरे उत्तर प्रदेश की धूल फांकने निकल पड़े थे। यूपी के समस्त जिलों को छान मारा था नेताजी ने इस क्रांति रथ से और तभी बोफोर्स का नाम गूंजा और वी.पी. सिंह जी राजीव गांधी जी से बगावत कर कांग्रेस से बाहर आ गए। कभी वी.पी. सिंह जी द्वारा डकैत उन्मूलन के नाम पर निर्दोष लोगों के इनकाउंटर पर उनके विरुद्ध जोरदार संघर्ष करने वाले मुलायम सिंह यादव जी को अब बदली राजनैतिक परिस्थितियों में उनके साथ सत्ता को उखाड़ फेंकने के संकल्प को पूर्ण करने हेतु सहयोगी बनना पड़ा था।
वी.पी. सिंह जी और मुलायम सिंह यादव जी के नेतृत्व में यूपी सहित पूरा देश तब कांग्रेस विरोधी मोर्चे में शामिल हो गया था। लोकदल, जनता पार्टी आदि विभिन्न दलों को विलीन कर जनता दल बना और जनता दल ने गैर कांग्रेसवादी राजनैतिक मुहिम को अंजाम देने के लिए भारतीय जनता पार्टी से हाथ मिला लिया था।1989 में कांग्रेसी सत्ता को सत्ताच्युत करने के लिए पूरा विपक्ष एकजुट हुआ और रैलियां शुरू हुयीं। इन रैलियों में मुलायम सिंह यादव जी का कांग्रेस विरोध और साम्प्रदायिकता विरोध यथावत कायम रहा। जनता दल और भाजपा का गठबंधन केंद्रीय स्तर पर रहा,लेकिन सूबाई स्तर पर मुलायम सिंह यादव जी ने अपनी धर्मनिरपेक्ष विचारधारा के कारण भाजपा से दूरी बनाये रखी और भाजपा से इतर रहते हुए यूपी में चुनाव लड़ा और सत्ता हासिल की।
नेताजी ने बिना भाजपा से समर्थन लिए 1989 में सरकार बनाकर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठकर देश में गैर कांग्रेसवाद के साथ ही साथ धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा को मजबूत बनाया। पूरे प्रदेश में मुलायम सिंह यादव जी ने साम्प्रदायिक सद्भावना रैली की और फिर लखनऊ में लामार्टनीयर मैदान में बेमिशाल विशाल साम्प्रदायिक सद्भावना रैला कर पूरे देश को अपनी अतुलनीय शक्ति को प्रदर्शित कर पहली बार राष्ट्रीय राजनैतिक क्षितिज पर अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज करायी।
यूपी की सत्ता संभालने के बाद मुलायम सिंह यादव जी ने दवाई-पढ़ाई-सिंचाई माफ़ की। पीसीएस में हिंदी को स्वीकार कर किसानों के बेटों को अधिकारी बनने का अवसर दिया। किसानों का कर्जा माफ़ किया। बड़े पैमाने पर बूढ़ों और विधवाओं को पेंशन दिया। किसान दुर्घटना और कन्या विद्याधन दिया। मण्डल कमीशन की सिफारिशों को लागू किया, तो एससी/एसटी का कोटा 22.5 % पूर्ण रूप से प्रदान किया। पंचायतों में प्रधान से लेकर ब्लॉक प्रमुख, जिला पंचायत अध्यक्ष तक,सभासद से लेकर चैयरमैन,मेयर की कुर्सी पर ओबीसी,एससी, एसटी सहित सभी वर्ग की महिलाओं को आरक्षण दिया। यूपी मुलायम सिंह यादव जी के नेतृत्व में एक नई सुबह की ओर अग्रसर हुआ।
मुलायम सिंह यादव जी के उत्तर प्रदेश की राजनीति में बलशाली बनने के बाद, केंद्रीय सत्ता को हासिल करने के लिए छटपटा रही भारतीय जनता पार्टी ने हिंदुत्व के मुद्दे को खूब उछाला, लेकिन नेताजी ने फौलाद बनकर उनके मंसूबो को चकनाचूर किया। 1991 के समय तो धर्मनिरपेक्षता के लिए उन्हें खुद की सरकार की आत्माहुति तक देनी पड़ी। वे इतने अलोकप्रिय हुए कि उन्हें प्रदेश में महज दो दर्जन सीटों तक सिमटना पड़ा। उन्हें अपनों ने ही मुल्ला मुलायम,मौलाना मुलायम, बाबर की औलाद तक कह डाला, लेकिन वे कभी सैद्धांतिक धरातल से विलग नहीं हुए। अलोकप्रियता के दंश को झेल गए, पर उन्होंने वैचारिक प्रतिबद्धता पर आंच नहीं आने दी। विवादित बाबरी मस्जिद के गुम्बद पर चढ़ने वाले मारे गए, लेकिन मुलायम सिंह यादव जी देश के संविधान, सुप्रीम कोर्ट के स्थगन आदेश और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद में दिए गए अपने वचन के निर्वाह हेतु मुलायम नरम नहीं पड़े बल्कि अत्यंत कठोर बने रहे और कानून को तोड़ने वालो को जमींदोज किया और बाबरी मस्जिद जमींदोज करने की मंशा को फलीभूत नहीं होने दिया।
देश के रक्षा मंत्री बने मुलायम सिंह यादव जी ने जब उत्तर प्रदेश से बाहर देश की राजनीति में कदम रखा तो उन्होंने वहां भी अपना लोहा मनवा लिया तथा सेना के इतिहास में वे एक अविस्मरणीय रक्षा मंत्री के रूप में अपना नाम दर्ज कराया।सीमा पर शहीद होने वाले प्रत्येक सैनिक की डेड बॉडी उसके घर भेजने का कानून मुलायम सिंह यादव जी ने ही बनाया,वरना उसके पहले हमारे शहीद सैनिक की उसके शहादत के बाद उसकी सिर्फ टोपी उसके घर आती थी। नेताजी ने शहीद सैनिक की शहादत के बाद उन्हें दस लाख रूपये देने का प्राविधान किया, जिससे प्रेरित होकर उनके बेटे अखिलेश यादव जी ने अपने प्रदेश के शहीद सैनिक को अलग से बीस लाख रूपये देने की शुरुआत की।
नेताजी ने सेना में हिंदी को सम्मान दिलाया तो हिमालय की सबसे ऊँची और बर्फीली चोटी पर धोती-कुर्ता पहन कर जा पँहुचे और सैनिकों की हौसला आफजाई की। नेताजी की मौजूदगी में जब पाकिस्तानी तोपों ने सीज फायर का उल्लंघन करते हुए गोले दागे तो नेताजी ने भारतीय सैनिकों से पूछा कि ये कैसी आवाजें हैं? सैनिकों ने जब बताया कि पाकिस्तानी तोपें गोले दाग रही हैं, तो नेताजी ने पूछा था कि फिर हमारी तोपें क्यों खामोश है? सैनिकों ने जब जबाब दिया कि ऊपर से अनुमति नहीं है, तो नेताजी ने कहा था कि आन स्पॉट खड़ा देश का रक्षा मंत्री आदेश देता है कि हमारी सेना भी जबाबी कार्यवाही करे,फिर क्या पाकिस्तान के दर्जनों बंकर ध्वस्त हो गए थे। ऐसा सर्जिकल स्ट्राईक जिसमें खुद रक्षा मंत्री आन स्पॉट मौजूद रहे हों न हुआ है और न होगा। ऐसे अद्भुत नेतृत्व क्षमता के मुलायम सिंह यादव जी युद्ध समर्थक नहीं हैं, पाकिस्तान विरोधी भी नहीं हैं, क्योंकि समाजवादियों की स्पष्ट राय है कि भारत, पाकिस्तान और बंग्ला देश का महासंघ बनना चाहिए, क्योंकि ये अखण्ड भारत के हिस्सा हैं।आज भले ही अलग-अलग हैं। मुलायम सिंह यादव जी की स्पष्ट मान्यता है कि हमें पाकिस्तान और बंगला देश से बेहतर रिश्ते बनाने चाहिए, लेकिन यदि वे युद्ध की स्थिति पैदा करते हैं, तो युद्ध भारत की धरती पर नहीं, वरन पाकिस्तान या बंगलादेश की धरती पर होगा।
अपनी लम्बी और अमिट राजनैतिक पारी जारी रखने वाले समाजवादी महानायक श्री मुलायम सिंह यादव के न रहने पर देश की धर्मनिरपेक्ष राजनीति में एकाएक राजनीतिक शून्यता आ गई है l

दिव्यांग दिवस पर रायबरेली में दिव्यांग दंपति ने मनाया स्व मुलायमसिंह यादव का जन्मदिवस। इस मौके पर बच्चों और ग्रामीणों में फल वितरण किया। दिव्यांगों के प्रति सरकारी उपेक्षाओं का ज़िक्र कर अपने दर्द भी बयां किए।

कुलदीप मिश्र
राज्य ब्यूरो प्रमुख
उत्तर प्रदेश

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