उत्तर प्रदेश का 75 परिवारों और 49 अधिकारियों वाला अजूबा गांव माधवपट्टी जहां पैदा होते हैं आईएएस और आईपीएस :

देशभर में तमाम युवक आईएएस अधिकारी बनने का ख्वाब लेकर दिन-रात कड़ी मेहनत करते हैं। कई युवक अपने शहर से पलायन कर तैयारी करने के लिए बड़े-बड़ें शहरों का रुख करते रहे हैं। उनके अभिभावकों द्वारा लाखों रुपए की कोचिंग के खर्च का वहन और युवकों द्वारा कड़ी मेहनत से की गई तैयारियों के बाद भी कुछ ही लोगों का ख्वाब पूरा हो पाता है। लेकिन अगर कोई देश की सबसे कठिन परीक्षा मानी जाने वाली यूपीएससी परीक्षा को पास कर लेता है तो आसपास के इलाकों में उसके चर्चे शुरू हो जाते हैं।
आज हम आपको एक ऐसे गांव माधवपट्टी की कहानी बताने जा रहे हैं जिसे आईएएस की फैक्ट्री कहा जाता है। इस गांव ने हमारे देश को कई अधिकारी दिए हैं। दुनिया भर में इस गांव के किस्से कहे-सुने जाते रहे हैं। इस गांव के लगभग हर घर से एक अधिकारी बनता है।
पूर्व विधायक जौनपुर सदर जनाब मोहम्मद अरशद ख़ान से हुई मुलाकात में जो जानकारी मिली उसके मुताबिक….
साल 1952 में इस गांव के डाॅ. इंदु प्रकाश बने थे पहले आइएएस।
पहले यह गांव ग्रामपंचायत हुआ करता था लेकिन अब यह नगर पंचायत बन गया है। यूपी में प्रस्तावित निगम चुनाव में यहां चुनाव होंगे। आईए आपको ले चलते हैं इस गांव में।
गांव में हैं महज़ 75 घर / परिवार :
गांव के एक निवासी के मुताबिक गांव के इतिहास के बारे जानकारी मुझसे साझा करते हुए बताया कि इस गांव में 75 परिवार हैं। गांव से 52 लोग देश-प्रदेश के बड़े-बड़े पदों पर तैनात हैं। उन्होंने बताया कि गांव से 40 आईएएस,पीसीएस अधिकारी हैं। इसके अतिरिक्त इस गांव के लोग इसरो,भाभा और विश्व बैंक में भी कार्यरत हैं।
कैसे शुरू हुआ सिलसिला :
माधवपट्टी गांव से पहली बार वर्ष 1952 में डाॅ.इंदुप्रकाश आईएएस बने। उन्होंने यूपीएससी में दूसरी रैंक हासिल की थी। डाॅ. इंदुप्रकाश फ्रांस सहित कई देशों के भारतीय राजदूत रह चुके हैं। डाॅ इंदु प्रकाश के बाद उनके चार भाई भी आईएएस बने। वर्ष 1955 में विनय प्रकाश सिंह ने आईएएस परीक्षा में 13वीं रैंक हासिल की और वह बिहार के मुख्य सचिव रह चुके हैं। वर्ष 1964 में छत्रपाल सिंह ने आईएएस परीक्षा उत्तीर्ण कर तमिलनाडु के मुख्य सचिव बने। 1964 में ही अजय सिंह, 1968 में शशिकांत सिंह भी आईएएस बने। ये चारों भाई डाॅ.इदुप्रकाश के भाई हैं।
कई पीढ़ियां बनी अधिकारी : इस माधव पट्टी गांव को आईएएस की फैक्ट्री तक कहा जाने लगा। गांव से अधिकारी बनने का सिलसिला अभी तक जारी है। डाॅ. इंदु प्रकाश के चार भाइयों के बाद उनकी दूसरी पीढ़ी में यूपीएससी परीक्षा क्वालीफाई करने लगीं। वर्ष 2002 में डाॅ.इंदुप्रकाश के बेटे यशस्वी आईएएस परीक्षा में 31वीं रैंकिंग लेकर आईएएस बने। 1994 में इसी परिवार के अमिताभ सिंह बनकर नेपाल के राजदूत रह चुके हैं।
महिलाएं भी बन रही हैं अधिकारी :
माधवपट्टी गांव से पुरुष ही नहीं वहां की बेटियों और बहुओं ने भी पुरुषों के समान अपना परचम लहराया। 1980 में आशा सिंह, 1982 में उषा सिंह और 1983 में इंदु सिंह अधिकारी बनीं। गांव के अमिताभ सिंह की पत्नी सरिता सिंह भी आईपीएस अधिकारी बनीं।
इसरो और भाभा परमाणु अनुसंधान में कार्यरत माधवपट्टी गांव के लोग :
माधवपट्टी गांव के जन्मेजय सिंह विश्वबैंक में कार्यरत हैं। गांव की डाॅ. नीरु सिंह और लालेंद्र प्रताप सिंह भाभा रिसर्च सेंटर में वैज्ञानिक हैं। वहीं ज्ञानू मिश्रा इसरो में वैज्ञानिक हैं। इसके अलावा गांव के निवासी देवेंद्र नाथ सिंह गुजरात के सूचना निदेशक रहे हैं।
गांव के निवासी बताते हैं कि माधवपट्टी गांव में खेत बहुत कम हैं इसलिए लोगों की रुचि पढाई-लिखाई में ही रहती है। इस गांव के बारे में कहावत है कि ” अदब से यहां विराजती हैं यहां वीणा वादिनी “। अगर यहां किसी युवक से आप सवाल करें कि वह भविष्य में क्या बनना चाहता है तो उसका जवाब होगा कि वह आईएएस -आईपीएस ही बनने की बात सुनने को मिलती हैं। हालांकि अब कुछ युवक शिक्षक भी बन रहें हैं।
कुलदीप मिश्र
राज्य ब्यूरो प्रमुख
उत्तर प्रदेश
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