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भाजपा ने बक्फ संशोधन बिल पास कराकर इन चार नेताओं को बनाया बलि का बकरा

भाजपा चाहती तो अपने पिछले 10 वर्ष के कार्यकाल में भी पास कर सकती थी, मगर गठबंधन की ही सरकार में क्यों कराया?

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अलका राठौर (विशेष संवाददाता)

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नयी दिल्ली————–भारतीय जनता पार्टी ने बक्फ  संशोधन बिल (2025) को अपनी चतुराई से पास तो करा लियार लिया।मगर एनडीए में  कुछ  ऐसी पार्टियों के नेता भी शामिल हैं जिनको मुस्लिम समाज का वोट भी मिलता है।मगर भाजपा ने अपनी चतुराई से चार नेताओं को बालि का बकरा बना दिया  है।यह बात इस वजह से की जा रही है कि याद भाजप चाहती तो अपने पिछले 10 वर्ष के स्पष्ट बहुमत से सत्ता में आई सरकार में भी इस बिल को ला सकती थी ,और पासकर सकती थी मगर नहीं कराया। क्योंकि भारतीय जनता पार्टी को अपने कुछ सहयोगी दलों के पैर काटने थे।वह काम उसने बड़ी ही शिद्दत से कर दिया है।इस बिल की समर्थन में रहने की वजह से राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष जयंत चौधरी,लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पसवान, तेलुगु देशम पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रबाबू नायडू,जनता दल (यूनाइटेड) राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार को मिलते रहे मुस्लिम वोट पर खतरा मंडराता  दिखाई दे रहा है।इन ने इस बिल का समर्थन करके अपने आप कुल्हाड़ी मार ली है।इन नेताओं की की पार्टियों में विरोध और स्तीफे का सिलसिला चालू हो चुका है।जो लगातार जारी है और विरोध के स्वर उभर कर सामने आ रहे है।आपको बताते चलें कि भारतीय जनता पार्टी इस बिल को लोकसभा में जब लेकर आई तो तो एनडीए गठबंधन के  293 मत एवं  बल के विपक्ष में इंडिया गठबंधन के नतृत्व में 233 मत मिले।इसी तरह राज्यसभा में  जब इस बिल को लाया गया तो पक्ष में 128 मत मिले जबकि बिल के विपक्ष में कुल 95 मत मिले।सबसे बड़ी बात यह रही कि इस बिल को रात्रि को 2:37 पर पास कराया गया।जानकारों का कहना है  कि इन नेताओं की इस स्पष्ट नीति से आने वाले चुनाव में इसका असर देखने को मिलेगा।इसका खामयाजा आने वाले चुनावों में  दिखाई देगा। मुस्लिम समाज का कहना है कि जो हमारे साथ खड़ा नहीं रहेगा, हम उसके साथ खड़े नहीं होंगे। इस बिल का जिन पार्टी के नेताओं द्वारा पुरजोर विरोध किया गया उनके साथ हम भी कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहेंगे।अब हमारे समाज का  एकमुश्त वोट इनके खिलाफ जाएगा।एनडीए में कुछ ऐसे नेता भी मौजूद हैं ।जो  अपने फायदे के लिए लगातार अपनी पार्टी का समर्थन लगातार सत्ताधारी पार्टियों को देते रहे हैं।विशेषज्ञों का कहना है कि भाजपा की चाल में फंसकर हिंदी टाउन ने अपना करियर बर्बाद कर लिया है।और विरोध शुरू होना लाजिमी है।

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