सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की पीठ में जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस रविंद्र भट, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस जे वी पारदीवाला और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी ने आर्थिक रुप से पिछड़े सामान्य गरीबों को 10 फीसदी आरक्षण दिए जाने का फैसला सुनाया है। पीठ के तीन सदस्यों ने आरक्षण के पक्ष में तथा दो ने विरोध किया था।
आईए विस्तार से जानते हैं कि किस जस्टिस ने फैसले में क्या कहा :
जस्टिस दिनेश माहेश्वरी : संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन नहीं। वर्गों का बहिष्करण समानता का उल्लंघन नहीं। संविधान के किसी प्रावधान का उल्लंघन नहीं।
जस्टिस जेवी पारदीवाला : ये आरक्षण आर्थिक न्याय को सुरक्षित करने का एक साधन। आर्थिक अन्याय के कारणों को मिटाने की कवायद आज़ादी के बाद से जारी।
जस्टिस बेला एम त्रिवेदी : नागरिक उन्नति के लिए सकारात्मक कार्रवाई के तौर पर संशोधन आवश्यक। ये आरक्षण भेदभावपूर्ण नहीं माना जा सकता।
जस्टिस यूयू ललित एवं जस्टिस एस रविंद्र भट : यह आरक्षण असंवैधानिक।एससी/एसटी/ ओबीसी में सबसे ज्यादा गरीब।EWS से उन्हें बाहर करना मनमाना और भेदभावपूर्ण। इसमें वर्गीकरण ‘समान अवसर’ के सार के विपरित। 103वां संशोधन संवैधानिक तौर से भेदभाव भरा। इस अदालत ने गणतंत्र के साथ दशक में पहली बार एक बहिष्करण, भेदभावपूर्ण सिद्धांत को मंजूरी दी। हमारा संविधान बहिष्कार की भाषा नहीं बोलता। संवैधानिक रूप से मान्यता प्राप्त पिछड़े वर्ग का बहिष्कार भेदभाव के अलावा कुछ नहीं। ये बहिष्कार गैर भेदभाव के सिद्धांत को कम करने, नष्ट करने के स्तर तक पहुंच गया है। वर्गीकरण का सिद्धांत समाज के सबसे ग़रीब वर्गों के बीच लागू किया। एक खंड में सबसे ग़रीब वर्ग शामिल हैं। दूसरे खंड में सबसे ग़रीब जो जाति के कारण अतिरिक्त अक्षमताओं के अधीन ।
क्या पिछड़े गरीबों को इससे बाहर करना भेदभावपूर्ण नहीं ?
क्या गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा सरकार ने स्वर्ण वोट बैंक को साधने हेतु इस मामले में सुप्रीम कोर्ट से जल्द फैसला करने का गुपचुप दिशा-निर्देश दिया।
भाजपा सुप्रीम कोर्ट के फैसले से उत्साहित हैं वहीं कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दलों ने इसका खास विरोध नहीं किया। देश की एक मात्र पार्टी डीएमके ने इसका विरोध मुखर तौर पर कर रही है।
कुलदीप मिश्र
राज्य ब्यूरो प्रमुख
उत्तर प्रदेश
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