भारत अपने जन्मकाल से एक बहु धर्मप्रधान देश है और पूरब से पश्चिम , उत्तर से सुदूर दक्षिण के लोग, सालों भर चलने वाले विभिन्न धार्मिक आयोजनों में बढ़ चढ़ कर शिरकत करते हैं। हमारे यहां धर्म का अपना व्यवहारिक, सामाजिक, आर्थिक व राष्ट्रीय महत्व है ।
बिहार व पूर्वी उत्तरप्रदेश में इन दिनों छठी मइया की पूजा की धूम है. देश ही नहीं अपितु दुनियां के किसी भी कोने में रहने वाले बिहारी या पूर्वांचली, चाहे वे पुरुष हों या महिला , इस पूजा को असीम भक्ति भावना के साथ बड़े ही उत्साह व उल्लास से मनाते हैं। प्रकृति के देवता , डूबते व उगते भगवान सूर्य की अराधना , छठ पर्व को अन्य धार्मिक आयोजनों से अलग करती है। कोई मूर्ति स्थापना नहीं , कोई चंदा उगाही नहीं और न ही मूर्ति विसर्जन के दौरान लगने वाले ठुमके. कोई मंदिर भी नहीं बल्कि प्रकृति की धरोहर नदियां व तालाब के घाट ही छठ पूजा की शोभा हैं । शहरों या गांव में शायद ही कोई ऐसा घर होगा जिसके सदस्य , घाटों में जाकर अपनी उपस्थिति दर्ज न कराते हों . प्रसाद के रूप में खरना हो या फिर ठेकुआ , पूरा जनमानस पूर्ण भक्ति भावना के साथ एक दूसरे के घर ही जाकर इसे ग्रहण नहीं करता बल्कि सरेआम हाथ फैलाकर ठेकुआ प्राप्त करने में फक्र महसूस करता है। पंडितजी को दान-दक्षिणा की अनिवार्यता का रिवाज भी छठ पूजा में नहीं । जो दे उसका भी भला और जो न दे••• उसका भी ! घर से सुदूर रोजगार करने करने वाले परिवार के सभी सदस्य , घर के इस नायाब आयोजन में सशरीर उपस्थिति को आतुर रहते हैं।
लोक महत्व के इस त्योहार का एक महत्वपूर्ण पक्ष स्वच्छता व शुद्धता भी है . लोग अपने अपने घरों की ही स्वच्छता सुनिश्चित नहीं करते हैं बल्कि संकोच त्याग , सारे किस्म के भेदभाव को भूल , एक सच्चे स्वयंसेवक बन, सड़कों और घाटों तक की सफाई सामूहिक रूप से करते हैं।
छठ पूजा के दौरान होने वाली आर्थिक गतिविधियां भी अपने आप में विलक्षण हैं । मदिरा एवं मांसाहार की दुकानों की बिक्री स्वत: लगभग शून्य हो जाती है जबकि आमतौर पर लगभग हर त्योहारों में कारपोरेट जगत प्रायोजित विज्ञापनों की चकाचौंधी भूमिका को धता बताते हुए , ग्रामीण क्षेत्रों से आए लोगों द्वारा फूटपाथ पर लगाई गई दुकानों में दीया-बाती , आल्ता , फल , सब्जियां , धागे ,कपूर, पान पत्ता , केतारी (गन्ना) आदि आदि नाना प्रकार की पूजा सामग्री की बिक्री अपने सारे रिकॉर्ड तोड़ देती है। इस रूप में हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने में छठ पूजा की एक अलग ही पहचान है।
हमारे खांटी वामपंथी मित्र भले ही धर्म की तुलना अफीम से कर भारतीय धार्मिक मान्यताओं को विकास में बाधा का पाठ करें , लेकिन ये सत्य व तथ्य है कि भारतीय जनमानस ने इस सिद्धांत को कभी भी मान्यता नहीं दी । नि:संदेह इसके पीछे के आर्थिक पहलू का अपना विशेष महत्व है क्योंकि इन्हीं धार्मिक आयोजनों से देश की एक बहुत बड़ी आबादी की दाल रोटी बिना भेदभाव चलती है. फिर जहां बात दाल रोटी की उपलब्धता की गारंटी की हो , वहां धार्मिक परंपराओं पर किसी प्रकार की चोट अथवा इनके औचित्य या उसकी प्रासंगिकता पर नकारात्मक विमर्श की कोई गुंजाइश ही नहीं रह जाती. तमाम अच्छाइयों के बावजूद , भारत में वामपंथ की राजनैतिक ताकत में लगातार ह्रास होने का एक महत्वपूर्ण कारण ये भी है ।
कुलदीप मिश्र
राज्य ब्यूरो प्रमुख
उत्तर प्रदेश
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