स्वार्थ की रस्सियों में जकड़ा इंसान और सरकार देश की मौजूदा सूरतेहाल में बिल्कुल बम के मानिंद हो गए हैं। अब यह अफवाह फैलाई जा रही है कि प्रदुषण बढ़ाने में बाजारवादी ताकतों का हाथ है। यह एक बड़ी साज़िश है, इसकी आड़ में उन्हें आजीवन अरबों रुपए कमाने का जरिया नज़र आता रहा है। यह एक विशेष प्रकार का कारोबार है है, इसमें मास्क और दवा से लेकर खान-पान और दिनचर्या की सभी चीजों के बाजार को नई दिशा मिल रही है। मोदी जी के आपदा को अवसर में बदलने का नया हथकंडा है। मोदी शासन को अच्छे दिन और अमृतकाल बताने और समझाने वाली मानसिकता वाले देश के अवसरवादी बिजनेस मैन बिरादरी है साथ ही इनकी हां हुजूरी कर करोंड़ो की कमाई के इच्छुक कमीशन बाज और घोटालेबाज प्रशासनिक अधिकारी वर्ग ही हैं बाकी तो पीड़ित और उत्पीड़ित वर्ग है जिसमें आम आदमी आता है।
सोशल मीडिया पर एक गजब शगूफा यह भी है कि
प्रदूषण फैलाने में रावण के सौतेले भाईयो खर और दूषण की मायावी शक्ति का हाथ है। तब से लगातार मायावी शक्ति, जितनी खत्म करो उतनी ही बढ़ती जाती है यानी हर युग में हालात एक जैसे होते हैं,बस विलेन के चेहरे बदल जाते हैं।
सुबह-सुबह की गरमा-गरम चाय की प्याली से चाय की पहली चुस्की के साथ ही ज्ञानचंद्र पांडेय ने यह वैचारिक कार्बन उत्सर्जन किया। बड़े सुकून से अखबार बारास्ते आंखों से पी रहीं पंडिताइन ने त्योरियां चढ़ाते हुए बात को खारिज करते हुए बोलीं, कुछ भी…आप किसी की ग़लती का ठीकरा किसी और पर कैसे फोड़ सकते हैं। यह सरकार की मानिंद असल और गंभीर मुद्दे को हवा में उड़ाने की कवायद है। इस देश में 2014 से यही होता आया है, किसी मुद्दे से जनता का ध्यान भटकाना हो तो किसी दूसरी ओर ले जाओ। किसी विपक्षी लोकप्रिय नेता के खिलाफ सीबीआई,ईडी के छापे, हिंदू -मुस्लिम और कांग्रेस के 75 सालों को कोसना और राममंदिर निर्माण के बाद ज्ञानवापी-वाराणसी वगैरह -वगैरह। जब से आपका नाम मोहल्ले और सोशल मीडिया इन्फ्लूएंशर की लिस्ट में जुड़ा है, तुम कुछ ज्यादा ही जहरीले हुए जा रहे हो। पंडिताइन ने गुस्से में अखबार को किनारे रखा और प्रदुषण के खिलाफ मोर्चा खोलने को आमादा हो गईं। बोलीं-जिस तेजी से सरकारें कारखानों को नोटिस थमातीं हैं,उसी तेजी से कारखाने और ज्यादा प्रदुषण उगलने लगते हैं आखिर करोड़ों रुपए चुनाव में चंदे में देती जो रहें हैं। पंडिताइन के तेवर देखकर हमारे ज्ञानचंद्र पांडे जी की चाय ठंडी और स्वाद कसैला हो चुका था। वे समझ गए कि कम से कम आज के दिन तो घर का वायुमंडल प्रदूषित होना तय है। हालात को भांपकर ज्ञानचंद्र पांडेय पतली गली से निकलने की फ़िराक में थे कि पंडिताइन ने एक वार और किया कि आप ही बताइए,सोशल मीडिया और भाजपाई आईटी सेल और गोदी मीडिया के जरिए क्या कम प्रदूषण फैलाया जा रहा है ? धूल और धुआं तो दिखता है लेकिन सोशल मीडिया का जहरीला प्रदूषण तो दिखता भी नहीं लेकिन आज के युवाओं पर खतरनाक नफरती जानलेवा असर छोड़ रहा है। स्वार्थी सरकार के शीर्ष नेता और उनकी देखा-देखी पार्टी के फायर ब्रांड नेता लोग बेसिरपैर की बातों से चुनाव दर चुनाव जनता को भड़काकर चुनाव जीत रहे हैं। समाज में हिंदू और मुस्लिम समुदाय में नफ़रतें बढ़ाकर दीवार खड़ी कर रहें हैं। अपने फायदे के लिए कहीं भी,कभी भी बेतहाशा फूट पड़ते हैं। चाहे किसी की भावनाएं आहत हों या मज़हब किसी के नुकसान की कोई परवाह ही नहीं। युवा भी ना जाने क्या – क्या देख-पढ़-सुनकर या तो कुंठित हो रहें हैं या विध्वंसक।
व्हाट्सऐप और फेसबुकिया लाइब्रेरी और गोदी मीडिया, जिसमें अब एनडीटीवी भी सरेंडर भी शामिल हो गया है, का इकलौता एजेंडा है अपनी भड़ास निकालो,न कोई पूछने वाला और न कोई आमने-सामने देखने वाला,बोनस में मिलती है पब्लिसिटी वो अलग।
ज्ञानचंद्र पांडेय के भले ही लाखों फाॅलोवर हैं लेकिन पंडिताइन के निष्पक्ष और निस्वार्थ तर्कसंगत बातों में लाखों पोस्टों से कहीं ज्यादा वजन था। वो बोले ” भई मैं समझ गया। काहे को खुद का मूड खराब करती हो। अब कभी मैं ऐसी पोस्ट कतई नहीं डालूंगा। पांडेय जी समझ गए कि सच को भले ही प्रचार और प्रसार की जरूरत पड़े लेकिन झूठे वादे-कसमें चुनावी जुमले तो पंख लेकर पैदा होते हैं।
कुलदीप मिश्र
राज्य ब्यूरो प्रमुख
उत्तर प्रदेश
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