राष्ट्रीय संगीत नाटक अकादमी द्वारा वर्ष 2020-21 के पुरस्करों की घोषणा!
शहर की मशहूर कथक की नृत्यांगना कथक गुरु प्रोफेसर कुमकुम धर,नाट्यकर्मी ललित सिंह पोखरिया और नाट्य लेखन के लिए सुशील कुमार सिंह को राष्ट्रीय संगीत नाटक अकादमी अवार्ड के लिए चुना गया है।
डाॅ.कुमकुम धर को वर्ष 2020 और ललित सिंह पोखरिया को 2021 का सम्मान मिलेगा।
भारतीय संस्कृति विश्वविद्यालय में नृत्य संकाय की पूर्व अध्यक्ष कुमकुम धर ने सम्मानित किए जाने पर कहा कि हर सम्मान बेहतर करने के लिए हमें प्रेरित करता है।
कथक गुरु कुमकुम धर ने कथक में महारत लखनऊ घराने स्व गुरु पंडित लच्छू महाराज के संरक्षण में प्राप्त की। कुमकुम धर ने देश के सभी प्रमुख प्रदेशों के अतिरिक्त विदेश में में लंदन, टोरेंटो, वाशिंगटन, खाड़ी देशों समेत इजिप्ट, इजरायल, बांग्लादेश, पाकिस्तान, मैक्सिको आदि में सफल एकल और समूह नृत्य की प्रस्तुतियां कर चुकीं हैं। नृत्य,गायन और अभिनय प्रतिभा के दुर्लभ सामंजस्य की धनी कुमकुम धर गुरु लच्छू महाराज द्वारा निर्देशित अनेकों नृत्य नाटिकाओं में मूख्य भूमिकाओं में रहीं।
आपने स्वयं पूर्वकालिक नृत्य नाटिकाओं , पुष्प वाटिका जिसमें खबर के लेखक जो अपनी किशोरावस्था में नाट्यकर्म और लखनऊ दूरदर्शन के नवोदित अभिनेता रहे, ने राम के पात्र और कुमकुम धर सीता के पात्र में अभिनय किया था। इसके अतिरिक्त बुद्ध, विधा,
कथक-कथा,नारि-जयते,मेघ-रजनी,पंच-कन्या,ब्रज-माधुरी, पंचतत्व आदि उल्लेखनीय हैं।
उत्तराखंड में जन्मे डाॅ.ललित सिंह पोखरिया ने भारतेंदु नाट्य अकादमी से नाट्यकला की शिक्षा ग्रहण की। कल्याणपुर में रहने वाले वरिष्ठ रंगकर्मी 1996 से वह अकादमी में अतिथि प्रवक्ता हैं।1987 से अब तक वयस्क वर्ग में 35 से अधिक नाटकों का लेखन और रुपांतरण मंचन कर चुके हैं। वहीं 36 बाल वर्ग में 36 से अधिक नाटकों का मंचन किया। करीब 80 नाट्य कार्यशालाओं का निर्देशन कर चुके हैं। पद्मश्री राज बिसारिया,भानु भारती, बीएम शाह, हेमेंद्र भाटिया समेत ख्यातिलब्ध निर्देशकों द्वारा निर्देशित नाटकों सहित 80 नाटकों के 500 से ज्यादा मंचनों में अभिनय किया। कुमाऊं के अभिव्यक्तिपरक परंपराओं का अध्ययन,शोध सर्वेक्षण करते हुए नाट्यशालाओं का निर्देशन भी किया।
वर्तमान में नाट्य संस्था निसर्ग के अध्यक्ष हैं।
लेखन व नाट्य कला जगत के कोहिनूर
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सुशील कुमार सिंह कला भूषण सम्मान से सम्मानित हुए सुशील कुमार सिंह:
कानपुर नगर के सुशील जी अपने नाम की तरह ही निहायत सुशील हैं। न बतोलेबाज, न बेफिक्री, न मलंगी, न फालतुओं के साथ बैठकी और न फेंकू। कनपुरिया खांटी जमात से मानो हुक्का पानी बंद हो। नजाकत के शहर में नफासत के साथ रहते हैं। डर यह कि कोई पहचान न ले और वापस कानपुर बुक न कर दे। उप्र हिन्दी संस्थान उन्हें कला भूषण सम्मान के रूप में ढाई लाख रुपये, शाल व स्मृति चिन्ह भेंट कर चुका है।
केपी सक्सेना दादा के निधन पर केपी दादा का मशहूर हिन्दी का पहला डेली सोप “बीबी नातियों वाली” के निर्देशक सुशील कुमार जी ही थे। सुशील जी की प्रतिभा और स्वभाव से मुतासिर तो बहुत हुआ लेकिन कोफ्त भी बहुत हुई। कला के क्षेत्र में इतना गुणी इंसान बिना खास पहचान के कोने अतरे में पड़ा है। अब आप इसी बात से इस शख्स की गहराई का पता लगा लेंगे कि इनके द्वारा लिखा गया एक नाटक ‘सिंहासन खाली है’ का पूरे भारतवर्ष में पाँच हजार से अधिक मंचन तथा लगभग सभी भारतीय भाषाओं में अनुवाद किया गया है। देश के कई विश्वविद्यालयों में स्नातकस्तरीय पाठय-क्रम में भी सुशील जी के नाटक शामिल किये गये। सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर, राजस्थान तथा बैंगलूरू यूनिवर्सिटी एवं कुकनूर यूनिवर्सिटी, कर्नाटक, में ‘‘अलख आज़ादी की’’ तथा धारवाड़ यूनिवर्सिटी धारवाड़, कर्नाटक में ‘‘सिंहासन खाली है’’ पाठ्य-क्रम में रहे। वर्ष 2019 में बैंगलूरू यूनिवर्सिटी में ‘‘सिंहासन खाली है’’ बी.एस.सी. पाठ्य-क्रम में शामिल किया गया।
अब आइये इन महाशय की शिक्षा दीक्षा पर भी निगाह डाल लें। दूरदर्शन धारावाहिक के निर्माता-निर्देशक सुशील जी ने कानपुर विश्वविद्यालय से बी.एस.सी. तक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, नयी दिल्ली से नाट्य-निर्देशन तथा भारतीय फिल्म एवं टी.वी. संस्थान, पुणे से फिल्म एवं टेलीविजन कार्यक्रम निर्माण-निर्देशन का विशेष प्रशिक्षण प्राप्त किया।
दूरदर्शन से जुड़े। सभी ऊंचाइयों को छुआ लेकिन संकोची मिजाज के चलते खुद दूर के दर्शन हो गये। जरा इनके काम पर नजर घुमाइये। देश के विभिन्न भागों में एक सौ से अधिक रंगनाटकों का निर्देशन, अनेकानेक नाट्य-शिविरों का संचालन निर्देशन, अनेक टी.वी. धारावाहिकों, सौ से अधिक टी.वी. नाटकों, टेलीफिल्मों, वृत्तचित्रों आदि का निर्माण-निर्देशन किया। सुशील जी के चर्चित पूर्णकालिक नाटक हैं-‘सिंहासन खाली है’, ‘नागपाश’, ‘गुडबाई स्वामी’, ‘चार यारों की यार’, ‘अँधेरे के राही’, ‘बापू की हत्या हजारवीं बार’, ‘आज नहीं तो कल’, ‘आचार्य रामानुज’, ‘बेबी तुम नादान’, ‘अलख आजादी की’। ‘नौलखिया दीवान’ ‘वो सूरज था’ आदि। बच्चों के लिए भी अपनी लेखनी का बढ़ चढ़ कर योगदान दिया यथा ‘ठग ठगे गये’, ‘लोक कथा कनुए नाई की’, ‘तमाशा’, ‘वैसे तो सब खैर कुशल है’, ‘विश्व-भ्रमण’, ‘बापू के नाम बाल नाटिकायें’, ‘बाल लोक नाटिकायें’ आदि आज भी स्कूलों में मंचित किये जा रहे है। इनके नाटकों के अनेक भारतीय भाषाओं में अनुवाद एवं मंचन भी हुए हैं। अनेक पुरस्कारों से सम्मानित भी किये गये हैं। नाट्य लेखन के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए उ.प्र. संगीत नाटक अकादमी द्वारा सुशील जी को 1991 में पुरस्कृत किया गया। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा भी इनके अनेक नाटकों को पुरस्कृत किया गया है। उ.प्र. हिन्दी संस्थान द्वारा डॉ. रामकुमार वर्मा बाल नाटक सम्मान-2018 प्रदान किया गया। भुवनेश्वर शोध संस्थान द्वारा भुवनेश्वर नाट्य-लेखन पुरस्कार भी प्रदान किया गया। उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक के विश्वविद्यालयों के अनेक शोधार्थियों ने इनके नाट्य-लेखन के विभिन्न आयामों पर सफलतापूर्वक शोधप्रबन्ध प्रस्तुत किये हैं। उ.प्र. के प्रसिद्ध नाट्य-प्रशिक्षण संस्थान भारतेन्दु नाट्य अकादमी, लखनऊ में भी सुशील जी ने पाँच वर्षों तक निदेशक के पद पर कार्यरत रहकर अनेक प्रतिमान स्थापित किए।
दूरदर्शन के विभिन्न केन्द्रों में नाट्य-निर्माता, निर्देशक के पद पर योगदान देते हुए, लखनऊ केन्द्र में उपनिदेशक (कार्यक्रम) के पद से सेवानिवृत्त होकर खाली समय मुम्बई में फिल्म अभिनय से जुड़ी दोनों बेटियों के साथ बिताते हैं। सम्प्रति सुशील जी स्वतंत्र रूप से रंगमंच एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए लेखन एवं निर्देशन में व्यस्त है।
कुलदीप मिश्र
राज्य ब्यूरो प्रमुख
उत्तर प्रदेश
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