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क्या राहुल गांधी ने सच में बदल दी है इस देश की राजनीति की तस्वीर ?

आज के आधुनिक दौर के इतिहास में समाज का दृष्टिकोण बदलने का सार्थक प्रयास करने वालों की गिनती हम उंगलियों पर कर सकते हैं इसकी सूची बहुत लंबी नहीं है। मसलन मैं अपनी बात को कुछ उदाहरणों से साबित करने की कोशिश करना चाहुंगा।

 नंबर एक – साउथ अफ्रीका में भारत के एक व्यापारी अब्दुल्ला का मुकदमा लड़ने गए हिंदूस्थान के उस वक्त के जाने माने और बाकायदा कोट-पैंट-टाई वाले वकील को अगर ट्रेन की प्रथण श्रेणी के कंपार्टमेंट से अपमानजनक तरीके से उतार कर तृतीय श्रेणी की बोगी में धकेला न गया होता तो हमें महात्मा गांधी नहीं मिलता और दुनिया की जो तस्वीर हम आज देख रहे हैं वो तस्वीर नहीं होती।विश्व को सत्य और अहिंसा के रास्ते को अपनाकर और ज़ुल्मों-सितम का प्रतिकार करने वाला महात्मा नहीं मिलता। यदि गांधी ने मिलते तो नेल्सन मंडेला, मार्टिन लूथर और अन्य न मिलते क्योंकि इन सब की प्रेरणा स्रोत महात्मा गांधी ही थे।

नंबर दो – अगर न्यूटन सेव के बाग में नहीं बैठे होते और पेड़ से एक सेव न गिरा होता तो दुनिया को गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत नहीं मिलता और विज्ञान आज जहां तक पहुंचा है कतई न पहुंचा होता बल्कि बहुत पीछे होता।

नबर तीन – अगर 1974 में जब लेखक महज़ दसवीं कक्षा का छात्र था तब पटना में छात्रों के जुलूस में लोक नायक जेपी पर तत्कालीन सरकार की पुलिस ने लाठीचार्ज न किया होता तो गैरकांग्रेसवाद का दिल्ली की सत्ता तक पहुंचने की कल्पना कोई नहीं कर सकता था।

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नंबर चार – अगर राजीव गांधी के वित्त मंत्री रहे विश्वनाथ प्रताप सिंह यदि अमिताभ बच्चन और नीरु भाई अंबानी से नहीं टकराए होते और अगर वीपी सिंह राजीव गांधी के खिलाफ नहीं जाते तो इस देश के समाज का पहिया जो मंडल कमीशन के साथ उलट गया था नहीं उलट पाता। आप और हम लालू प्रसाद मुलायम, सिंह यादव, कांशीराम,नितिश कुमार , मायावती, देवगौड़ा और कल्याण सिंह और नरेंद्र मोदी वगैरह -वगैरह का अस्तित्व नहीं होता। बगैर मंडल कमीशन के देश की कोई भी राजनीतिक पार्टी पिछड़ों को आगे लाने की एक बार सोचती भी नहीं। तत्कालीन देश की पार्टियां चाहे वो वामपंथी हों या दक्षिणपंथी सभी सवर्णवाद की मानसिकता से ग्रसित थी। सभी पार्टियों में उच्च जातियों का वर्चस्व कायम था।
कुछ-कुछ ऐसी ही कोशिश राहुल गांधी भी करते नज़र आते हैं। अगर 2014 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा सरकार सीबीआई,ईडी और अन्य एजेंसियों का दबाव राहुल गांधी और सोनिया गांधी पर लगातार और बेवजह न बढ़ाया गया होता तो हम देशवासी राहुल गांधी को इस तरह न देख पाते जैसा आज देख रहे हैं। वो अपने कांग्रेसी मिशन में कामयाब होंगे या नहीं यह कोई भी नहीं बता सकता है लेकिन एक बात सच है कि राहुल गांधी ने ठहरे हुए पानी में कंकड़ फेंक कर हलचल तो पैदा कर ही दी है।
आज देश में महंगाई और नफ़रती दौर अपने चरम पर है और दिन-दूना रात-चौगुना बढ़ता ही जा रहा है। ऐसे में कांग्रेस की बल्कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा तेज तपती कड़ी धूप में एक ठंडी हवा के झोंके का अहसास कराती है। अगर देशवासी मोदी शासन के अमानवीय, असंवेदनशील, असंवैधानिक, अलोकतांत्रिक, फासिस्टवादी और हिंदुत्ववादी कृत्यों का पुरजोर विरोध नहीं करते हैं तो भारत का वर्तमान युवा पीढ़ी और आने वाली पीढ़ियां हमें माफ़ नहीं करेंगी।

कुलदीप मिश्र
राज्य ब्यूरो प्रमुख
एसके न्यूज़ एजेंसी
उत्तर प्रदेश

Sk News Agency

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