
इंटरटेनमेंट फीचर :
फिल्म ‘यशोदा’ ऐसी दो महिलाओं की कहानी पर आधारित है, जिनके लिए नारी सशक्तिकरण की पैरवी करने वाले ठेकेदारों को गुड फील न हो, लेकिन इस फिल्म और वक्त बहुत सामयिक है। यशोदा दो ऐसी महिलाओं की व्यथा है, जिनके लिए नारी सशक्तिकरण के मायने भिन्न-भिन्न हैं।
सौंदर्य प्रतियोगिता में चीफ गेस्ट बनकर पधारे मंत्री से एक मेडिकल छात्रा सिर्फ इसलिए शादी करने को राजी हो जाती है, क्योंकि उसके पास अकूत धन-संपदा है। दूसरी ओर यशोदा है। यशोदा नाम को हर पल हर कदम जीने को प्रयासरत करती दिखने वाली एक गरीब परिवार की एक युवती। वह अपनी छोटी बहन के इलाज के लिए अपनी कोख किराए पर देशों को तैयार हो जाती है।
यह माना जा सकता है कि कृत्रिम गर्भाधान साइंस की पिछली सदी की बड़ी तरक्की रही है। इसी का ही अगला विस्तार/ एपिसोड सरोगेसी के तौर पर परोसा जा रहा है।
कानूनन एक दंपति ही सरोगेसी के माध्यम से अभिवावक बन सकता है लेकिन शर्त यह है कि उस दंपति की पहले से कोई संतान न हो। इसमें छूट के प्रावधान के मुताबिक एक स्वस्थ संतान के माता-पिता सरोगेसी से बच्चा हासिल नहीं कर सकते।
मेडिकल रिसर्च के अनैतिक प्रयोग/ सद्प्रयोग से धन जुटाने वालों के लिए एक आईना है। साथ ही साथ यह हमारा ध्यान भी इस ओर आकर्षित करती है।
फिल्म यशोदा में एक गरीब, और बेसहारा मजबूर किरदार से शुरू होकर किसी अंजान के वीर्य से हुए गर्भाधान के बाद गर्भ में पल रहे एक मासूम बच्चे से हुए भावनात्मक लगाव तक ले जाती है।
फिल्म में सामंथा ने किरदार को बखूबी निभाया है। 55 करोड़ की लागत वाली यह फिल्म एक अनुमान के मुताबिक दक्षिणी राज्यों में अच्छा बिजनेस दे रही है।
कुलदीप मिश्र
राज्य ब्यूरो प्रमुख
उत्तर प्रदेश
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