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उत्तराखंड में भी दिल्ली जैसा आंदोलन:दो CM जिस सड़क को बनवाने का वादा कर चुके हैं, उसके लिए महीने भर से धरने पर सैकड़ों गांव वाले

चमोली जिले के नंदप्रयाग से विकासखंड घाट को जोड़ने वाली सड़क के चौड़ीकरण की मांग को लेकर यह आंदोलन चल रहा है। इसमें महिलाएं और पुरुष दोनों शामिल हैं।

दिल्ली में चल रहा किसान आंदोलन बीते दो महीने से देश की सबसे बड़ी खबर बना हुआ है। न सिर्फ अपने व्यापक स्वरूप के चलते ये आंदोलन सुर्खियों में रहा है, बल्कि अपने अनोखे प्रबंधन और प्रदर्शन के तरीकों के चलते भी ये आंदोलन मीडिया में छाया रहा। लेकिन मीडिया की सुर्खियों से दूर लगभग ऐसा ही एक आंदोलन उत्तराखंड के एक सुदूर कस्बे में भी चल रहा है। पिछले एक महीने से यहां भी सैकड़ों लोग सड़क पर लंगर डाले कड़कड़ाती ठंड में बैठे हुए हैं। इनकी मांग सिर्फ इतनी है कि इनके गांवों तक पहुंचने वाली उस सड़क का निर्माण पूरा किया जाए। जो हर साल न जाने कितने हादसों का कारण बन रही है।

उत्तराखंड में एक तरफ बहुचर्चित चार धाम परियोजना के तहत सड़कों का चौड़ीकरण हो रहा है, तो वहीं कई सड़कें ऐसी हैं जिनकी स्थिति आज भी वैसी ही है जैसी दशकों पहले हुआ करती थी। चमोली जिले के नंदप्रयाग से विकासखंड घाट को जोड़ने वाली करीब 19 किलोमीटर लंबी सड़क भी इन्हीं में से एक है। इसके चौड़ीकरण की मांग को लेकर इन दिनों यह आंदोलन चल रहा है।

नंदप्रयाग से घाट को जोड़ने वाली इस सड़क को बनाने का काम दशकों पहले साल 1962 में शुरू हुआ था। इसके बाद से इस सड़क मार्ग पर छोटे-मोटे सुधार तो हुए लेकिन मुख्य सड़क की स्थिति आज भी जस की तस ही बनी हुई है। जबकि बीते दशकों में इलाके की आबादी कई गुना बढ़ी है और यातायात भी तेज हुआ है। यह सड़क 50 से ज्यादा ग्राम पंचायतों को जोड़ती है, जहां रहने वालों की संख्या 50 हजार से ऊपर है।

दिलचस्प यह भी है कि इस सड़क को बनाने का वादा प्रदेश के दो-दो मुख्यमंत्री कर चुके हैं। लेकिन धरातल पर आज तक काम शुरू नहीं हो सका है। सबसे पहले प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने अपने कार्यकाल में इस सड़क निर्माण का वादा किया था। उनका कार्यकाल पूरा हो गया लेकिन ये वादा पूरा नहीं हुआ। फिर चुनाव हुए, सरकार बदली और प्रदेश में बतौर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की ताजपोशी हो गई।

14 सितंबर 2017 को मुख्यमंत्री रावत जब इस क्षेत्र में दौरे के लिए आए तो उन्होंने भी इस सड़क के निर्माण, चौड़ीकरण और डामरीकरण की घोषणा की। कुछ समय बाद करीब एक करोड़ 28 लाख रुपए सड़क निर्माण के लिए स्वीकृत भी कर लिए गए। लेकिन कागजों पर मिली यह स्वीकृति कभी जमीन पर नहीं उतर सकी।

कई साल के इंतजार के बाद भी जब सड़क निर्माण शुरू नहीं हुआ तो आखिरकार इन लोगों को आंदोलन के लिए मजबूर होना पड़ा। लिहाजा बीते 4 दिसंबर से घाट के लोग सड़क पर डेरा जमाए बैठे हैं। करीब एक हफ्ता पहले आंदोलन में शामिल इन लोगों ने 19 किलोमीटर लंबी मानव शृंखला बनाकर अपना विरोध दर्ज करवाया था। इसके बाद प्रशासन स्तर पर जो कार्रवाई हुई वह भी काफी दिलचस्प है।

हजारों लोग जब मानव शृंखला बनाकर सड़कों पर जमा हो गए तो प्रशासन को मामले का संज्ञान लेना पड़ा। मुख्यमंत्री रावत ने संबंधित अधिकारियों को आदेश जारी करते हुए आंदोलनकारियों की मांगों का परीक्षण करने के बाद कार्यवाही का आदेश जारी कर दिया। लेकिन इस कदम ने इनकी मुश्किलों को कम करने की जगह और भी बढ़ा दिया है।

admin

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